बदलाव : एक शब्द या एककहानी
कहते हैं की ज़िन्दगी में कुछ अगर स्थायी रहता है तो वो है बदलाव।मैंने भी एक कोशिश की है खुद को खोजने की। आँखें बंद करके जब अपना गुजारा हुआ दिन भी सोचती हुँ तो लगता है मानो बहुत कुछ पिछे छूट गया ।
बड़ी छोटी सी है ज़िन्दगी इतने सारे फलसफे। कितनो से रूठ जाऊ कितनो को मनाओ , एक पल ख़ुशी का एक गम का , किसको जाके अपना मंन दिखाऊ । आइना भी कभी झूठ बोल देता है , पलकों में छुपे आंसुओ को संझो लेता है । वक़्त बदला वो बदले , हम जो जरा खुद के हुए , वो बोले तुम भी आखिर बदल ही गए ।
सवाल यहाँ ये है क्या बदलाव उचित है । हम हर पल आगे बढ़ रहे है । जीवन में हर चीज को पाने की चाह , उसको पाने की ज़िद में भुला दिए गए पल या रिश्ते , क्या कभी कहते नहीं है की अब क्यों बदल रहे हो । शायद किसी भी दूसरे को कहना आसान होता है के तुम पहले जैसे नहीं रहे पर खुद को मानो हम सब भुला बैठे है ।
भौतिक सुख की चाह तो ना जाने कितनो को बदल दिया है पर दुःख तब होता है जब लोग मुँह मोड़ लेते है ।
भावनात्मक रूप से बदलाव शायद सबसे जायदा असहीनय है ।
दुःख के कई रूप होते है पर जब दिल पर चोट लगती है बर्दाश्त नहीं होती । कुछ ताने बानो की है जिंदगी , एक लम्हा तेरे इंतज़ार का ,एक खनक तेरी आवाज़ की , बदल गयी है दुनिया पर मिटी ना आस तेरे ऐतबार की ।
बड़े सारे उदहारण है जब मन ये सोचने पर मजबूर हो जाता है के क्या कमी की हमने । कभी पड़ोस में रह रहे वृद्ध माता पिता से पूछो , विदेश गए बच्चे क्यों बदल गए । कभी आज कल किसी भी कपल से पूछो , कैरियर की रेस में दिल कैसे बदल गए ।
अजीब लगता है ना , पता हम सबको होता है के मन से कमी कहा की पर फिर भी जो ना हट पाया वह था हमारा बदलाव ।
विचारों से आगे बढ़ना जीवन को खुबसूरत करता है पर उसकी कसौटी मूल्यों का बदलना नहीं होना चाहिए ।
आओ आज बढे एक नए बदलाव की ओर , एक नए आगाज़ के साथ ॥
कहते हैं की ज़िन्दगी में कुछ अगर स्थायी रहता है तो वो है बदलाव।मैंने भी एक कोशिश की है खुद को खोजने की। आँखें बंद करके जब अपना गुजारा हुआ दिन भी सोचती हुँ तो लगता है मानो बहुत कुछ पिछे छूट गया ।
बड़ी छोटी सी है ज़िन्दगी इतने सारे फलसफे। कितनो से रूठ जाऊ कितनो को मनाओ , एक पल ख़ुशी का एक गम का , किसको जाके अपना मंन दिखाऊ । आइना भी कभी झूठ बोल देता है , पलकों में छुपे आंसुओ को संझो लेता है । वक़्त बदला वो बदले , हम जो जरा खुद के हुए , वो बोले तुम भी आखिर बदल ही गए ।
सवाल यहाँ ये है क्या बदलाव उचित है । हम हर पल आगे बढ़ रहे है । जीवन में हर चीज को पाने की चाह , उसको पाने की ज़िद में भुला दिए गए पल या रिश्ते , क्या कभी कहते नहीं है की अब क्यों बदल रहे हो । शायद किसी भी दूसरे को कहना आसान होता है के तुम पहले जैसे नहीं रहे पर खुद को मानो हम सब भुला बैठे है ।
भौतिक सुख की चाह तो ना जाने कितनो को बदल दिया है पर दुःख तब होता है जब लोग मुँह मोड़ लेते है ।
भावनात्मक रूप से बदलाव शायद सबसे जायदा असहीनय है ।
दुःख के कई रूप होते है पर जब दिल पर चोट लगती है बर्दाश्त नहीं होती । कुछ ताने बानो की है जिंदगी , एक लम्हा तेरे इंतज़ार का ,एक खनक तेरी आवाज़ की , बदल गयी है दुनिया पर मिटी ना आस तेरे ऐतबार की ।
बड़े सारे उदहारण है जब मन ये सोचने पर मजबूर हो जाता है के क्या कमी की हमने । कभी पड़ोस में रह रहे वृद्ध माता पिता से पूछो , विदेश गए बच्चे क्यों बदल गए । कभी आज कल किसी भी कपल से पूछो , कैरियर की रेस में दिल कैसे बदल गए ।
अजीब लगता है ना , पता हम सबको होता है के मन से कमी कहा की पर फिर भी जो ना हट पाया वह था हमारा बदलाव ।
विचारों से आगे बढ़ना जीवन को खुबसूरत करता है पर उसकी कसौटी मूल्यों का बदलना नहीं होना चाहिए ।
आओ आज बढे एक नए बदलाव की ओर , एक नए आगाज़ के साथ ॥